पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/२०७

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. Pada 1] Ascent १४९ (१) अनुवाद . निश्चय ही मैंने रामरूपी रत्न-धन पा लिया । मेरे सद्गुरु ने मुझे अमोल वस्तु दी और कृपा कर अपना बना लिया । मैंने जग में सब कुछ खो दिया और जन्म जन्म की पूंजी पा ली। वह पूँजी न खर्च करने से कम होती है और न उसको चोर लूट सकते हैं, अपितु वह दिन दिन सवाई बढ़ती जाती है। सतनाम की नैया और सद्गुरु रूप केवट के द्वारा मैं भवसागर तर आई । मीरा कहती है कि गिरिधर नागर मेरे प्रभु हैं । हर्षित हो होकर मैं उनका यश गाती हूँ । .