पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/२०८

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१५० परमार्थसोपान [Part I Ch. 5 2. MIRA'S EXPERIENCE OF SOUND AND COLOUR. फागुन के दिन चार रे, होरी खेल मना रे विनि करताल पखावज बाजै, अणहद की झणकार रे विनि सुर राग छतीसूँ गावै, 11 2 11 11211 रोम रोम रंग सार रे ॥ ३ ॥ सील सन्तोख का केसर घोला, प्रेम प्रीति पिचकार रे 118 11 उड़त गुलाल लाल भयो अम्बर, बरसत रंग अपार रे 114 11 घट के पट सब खोल दिये हैं, लोक लाज सब डार रे ॥ ६ 11 & 11 होरी खेलि पीव घर आये, सोइ प्यारी प्रिय प्यार रे ॥ ७ ॥ मीरा के प्रभु गिरिधर नागर, चरण कँवल बलिहारि रे ॥ ८ ॥