पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/२१४

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१५६ परमार्थसे । पान [Part I Ch. 5 5. ON GOD AS INEXTRICABLY BOUND UP WITH EVERY FIBRE OF THE BODY. अब तो प्रकट भई जग जानी 11211 वा मोहन से प्रीति निरन्तर, क्यों हि रहेगी छानी ॥ १ ॥ कहा करूँ सुन्दर मूरति इन, नयनन माँझ समानी ॥२॥ निकसत नाहिं बहुत पचि हारी, रोम रोम उरझानी ॥३॥ अब कैसे कहूँ री जात है, मिलौ दूध से पानी 11811 सूरदास प्रभु अन्तर्यामी, सब के मन के स्वामी 11411