पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/२२०

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૯૨ परमार्थसोपान [Part I Ch. 5 8. DHARAMDAS ON BEATIFICATORY EXPERIENCE. _ झरि लागै महलिया गगन घहराय ॥ ये ॥ खन गरजै खन विजुरी चमकै । लहर उठे शोभा वरनि न जाय 11 2 11 सुन महल में अमृत बरसै । प्रेम अनन्द हैं साधु नहाय ॥ २ ॥ . खुली केवरिया मिटी अंधेरिया । धन सतगुरु जिन दिया लखाय ॥ ३ ॥ धरमदास विनवै कर जोरी । सतगुरु चरन में रहा समाय 11811