पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/२३०

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१७२ परमार्थसोपान [ Part I Ch. 5 (Contd. from p. 170) मोतियन का मेंह बरसता, सो ब्रह्मा ज्ञान विधाता, खूब घटा, बनी खूब घटा, तारा सो विसन रूप सजता, पालन वाला भरमस्ता, गोल गुण्डाला, चकर उजाला, शिव मतवाला, यही रूप तीनों का हुआ, चल आगे और कुछ हुआ, बड़ी लहर बहर बेनवा, मन उन्मन होके गरके, लहलहाट बिजली चमके ॥ ३ ॥ नरहरि नाथ गुरु मेरा, मैं महिपत गुलाम तेरा, क्या कहूँ, अब क्या कहूँ, जाको वेद न जाने डेरा, वो मैंनें नयनन सों हेरा, सच्चा साईं, गुरु गोसाईं, राह बताई, जिससे सकल भरमना मिटी, डोरी जनन मरन की टूटी, कोठड़ी करम की फूटी, लागी लगन मगन दिल हरखे, लहलहाट बिजली चमके ॥ ४ ॥