पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/२३७

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Pada 15] Ascent १७९ (१५) अनुवाद. हे साधो, हमारा देश ऐसा है कि अन्तर में प्रवेश करने वाला ही उसको जान सकता है । ( उस देश का ) पार वेद और कुरान नहीं पाते । वह देश कहने सुनने से परे है । शून्य महल में नौवत, किंगरी, वीणा और सितार बज रहे हैं, जहाँ बादलों के विना बिजली चमकती है, सूर्य के बिना उजाला रहता है। सीप के बिना मोती उपजते हैं, स्वर के बिना शब्द उच्चरित होता है । जहां ज्योति को लजित कर ब्रह्म दिखाई पड़ता है और आगे अगम अपार है। कबीर कहते हैं कि वहीं हमारा वास है । कोई प्यारा गुरुमुख ही इसको समझ सकता है।