पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/२४३

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1 Pada 18] Ascent.' 24 (१८) अनुवाद. हरि-रस ऐसा है, रे भाई, हरि-रस ऐसा है कि जिसको पीने से जीव अमर हो जाता है। ध्रुव ने पिया, प्रह्लाद ने पिया और मीराबाई ने पिया। हरि-रस महँगे मोल का है । कोई विरला ही पीता है । महँगा हरि-रस वही पीता है, जिसके धड़ पर शीश न हो। आगे आगे दावा- नल जलता है, पीछे हरियाली होती है। कबीर कहते हैं कि हे साधो ! हरि को भज-कर लोग निर्मल होते हैं ।