पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/२४४

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१८६ परमार्थसोपान [ Part 1 Ch. 5 19. THE SLAKING OF SPIRITUAL THIRST AS LEADING ON TO FURTHER THIRST. हो तो कोई पिये राम-रस प्यासा 11 2 11 मृग तृष्णा-जल छाँड़ि बावरे, करो सुधा रस आमा 11 2 11 ध्रुव पिया, प्रह्लाद हूँ पीया, और पिया रैदासा 113 11 गोरख पिया मछन्दर पीया, मीरा भरि भरि कासा ॥ ३ ॥ गुरुमुख छोड़ सो भर भर पीवे, मनमुख जात निरासा 11811 कहत कबीर सुनो हो सन्तो, और पियन की आसा 114 11