पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/२५३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

Pada 23] Ascent. १९५ (२३) अनुवाद. हम इश्क में मस्त हैं। हमारे लिये होशियारी से कपा प्रयोजन है ? हम इस जग में स्वतंत्र रहते हैं । हम को दुनिया की दोस्ती से क्या ? जो लोग प्यारे से बिछुड़े हैं, वे द्वार द्वार भटकते फिरते हैं । हमारा यार हम में है । हमें किसी की प्रतीक्षा से क्या प्रयोजन है ? सारी दुनिया अपने नाम के लिए भरसक सिर पटकती है। हम को हरिनाम में अनुरक्ति है फिर हमें दुनिया की दोस्ती से क्या प्रयोजन ? न पिय हम से पलमात्र बिछुड़े रहते हैं और न हम प्यारे से। उन्हीं से नेह लग गया है, फिर हम को बेचैनी कैसी ? दुविधा को हृदय से दूर कर के कवीर ईश्वर के प्रेम में मस्त हुआ है । अगर नाजुक राह पर चलना है, तो सिर पर भारी बोझ क्यों लिया जाए ?