पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/३१३

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Dohas 13-15] Pilgrimage २५५ (१३) अनुवाद. शून्य मर जाता है; अजपा मर जाता है; अनाहत भी मर जाता है । पर दास कबीर नहीं मरता, जिसने राम नाम की रट लगाई है । (१४) अनुवाद. जो कल करना है, वह आज करो । जो आज करना हो सो अभी कर लो । पल में प्रलय हो जायगी । फिर तुम कब करोगे ? (१५) अनुवाद. श्वास श्वास पर हर को भजो । श्वास को व्यर्थ मत खोओ | श्वास पराया पाहुना हैं । इसका फिर आना हो या न हो । कबीर कहते हैं कि काठ की माला को फेरना बहुत यत्न का काम है | श्वास उच्छवास की माला ऐसी है कि उसमें न गाँठ ह न मेरु । श्वासों की सुमिरनी बना अजपा का जप करें । परमतत्व का ध्यान धर । फिर आप ही आप " सोsहं " है ।