पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/३२४

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.n). परमार्थसोपान [Part II Ch. 4 30. A ONE-POINTED DEVOTION DEFIES THE STROKE OF THE GREATEST CALAMITY. एक भरोसो, एक बल, एक आस विस्वास | एक राम घनश्याम हित, चातक तुलसीदास ॥ वरसि परुप पाहन पयद, पंख करौ टुक टुक | तुलसी परी न चाहिए, चतुर चातकहिं चूक ॥ उपल चरसि गरजत तरजि, डारत कुलिस कठोर । चितव कि चातक मेघ तजि, कबहुँ दूसरी ओर || वय वधिक पय पुन्यजल, उलटि उठाई चोंच । तुलसी चातक-प्रेम-पट मरत हूँ लगी न खींच ॥ ,