पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/३२८

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२७० परमार्थसोपान [Part II Ch. 5 4. INTER-INCOMMUNICATIVENESS OF SENSES. जो देखे सो कहै नहिं, कहै सो देखे नाहिं । मुनै भो समझावै नहीं, रसना हग श्रुति काहिं || 5. A SPIRITUAL REALISER ALONE CAN UNDER- STAND THE SIGNS OF A SPIRITUAL REALISER. जो गूंगे के सैन को, गूँगा ही पहिचान | त्यों ज्ञानी के सैन को, ज्ञानी होय सो जान ॥ 6. ONE SHOULD NOT OPEN ONE'S DIAMOND BEFORE A VEGETABLE-SELLER. द्वीरा तहाँ न खोलिये, जहँ कुँजरन की हाट । सहजहिं गाँठी बाँधि के, लगौ आपनी बाट ||