पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/३४१

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Dohas 22-24] Ascent २८३ (२२) अनुवाद. मैं प्रिय को हेरने गई । हेरते हेरते स्वयं ही हेरा ( या हिरा ) गई । मैंने प्रिय को पहिचाना नहीं । प्रिय घट में समा गया । (२३) अनुवाद. मेरा मन मर गया और शरीर दुर्बल हो गया । " कवीर ! कवीर !" कहते हरि पीछे-पीछे फिरते हैं । (२४) अनुवाद. धनी को कवीर कहते हैं कि मैने केवल एक अंग देखा । उसकी भी महिमा कही नहीं जाती । तेज - पुञ्ज मैंने स्पर्श किया । वह नयनों में समा रहा है ।