पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/३४४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२८६ परमार्थसोपान [Part II Ch. 5 28. IGNORANDO COGNOSCI; COGNOSCENDO IGNORARI. रहिमन बात अगम्य की, कहन सुनन की नाहिं | जे जानत ते कहत नहिं कहत ते जानत नाहिं || कविरा जब हम गावते, तत्र जाना गुरु नाहिं | अब गुरु दिल में देखिया, गावन को कछु नाहिं ॥ 29. THE DIAMOND DOES NOT PROCLAIM ITS PRICE. बड़े बड़ाई ना करें, बड़ो न बोलें बोल । रहिमन हीरा कब कहै, लाख हमारो मोल || 30. THE SAINT MUST STAND UNCONCERNED. कविरा खड़ा बज़ार में, दोनों दीन कि खैर । ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर ||