पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/३९६

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46 तीरथ परमार्थसोपान - टिप्पणी [ Part I Ch. IV खोई - cf. 'हरि को ढूँढन में चला जा पहुँचा हरिद्वार । हरी मिले ना पग थके, हरि थे मेरे द्वार ॥ धन कामिनि को नजर न लावे - Even moral perfection does not mean spiritual attainment. खूब - To the utmost limit. रहा न वाकी - वाकी being / is here predicate and not subject. कहें मछेद्र सुनु र गोरख - We have taken the पाठ of this poem as we have found in South India. An upper India recension in the possession of सुखदेवविहारी मिश्र, reads, 'हुकुम निवृत्ति का ज्ञानेश्वर को '. Note :- 1. तीन गुण - सत्व, रजस् and तमस् in Sk. हष्णु, होन्नु and मण्णु in Kanarese; कामिनी, कांचन and कादम्बरी ( wine in Sk. cf. कादम्बरीरसभरण समस्त एव । मत्तो न किंचिदपि चेतयते जनोऽयम् ' ) 6 2. भई and पिलाना ( Past tense ) -- both to be interpreted in the Potential mood. 3. Things which do not constitute sainthood : A. (१) खाक लगाना, वन में जाना, तन को लकड़ी करना । ( २ ) तीर्थ संचार । (३) वेद क्रिया प्रतिपादन । ( ४ ) शास्त्र परिसमाप्ति । B. ( १ ) खेचरिमुद्रा, वज्रासन | C. D. (२) कुण्डलिनी उत्थान, ब्रह्मरन्ध्र प्रवेश । सिद्धि या चमत्कृति । (१) गोपन, प्रकटन, दूर गमन । ( २ ) शरीर त्याग, स्वर्ग संचार । कामिनी कांचन त्याग । Things which do constitute sainthood: ( १ ) गुरुकृपालब्धि ! ( २ ) तीन अवस्था और तीन गुणों से पर जाना । ।