पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/४७४

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e. परमार्थ सोपान ( १ ) महात्मा कबीरदास. ⋅ महात्मा कबीरदास का जन्म सं. १४५५ में माना जाता है और शरीरान्त १५९५ में। कुछ लेखकों का विचार है कि आप का जन्म किसी ब्राह्मण विधवा के गर्भ से हुआ था और अपनी लाज बचाने को उसने इन्हें बनारस के एक ताल पर छोड़ दिया, जहां से उठाकर जुलाहे नीमा और उस की स्त्री नीरू ने इन्हें पुत्रवत् पाला । ये दोनों मुसलमान जोलाहे थे । कवीर का ब्राह्मणी विधवा का पुत्र होना निराधार कथन होने से अग्राह्य है । हम इन्हें नीमा नीरू का ही सन्तान मानते हैं । मुसलमान होकर भी आप हिंदू धर्म की ओर बहुत झुकते थे। यह एक प्राचीन विश्वास है कि निगुरा की मुक्ति नहीं होती । इसी लिये आप महात्मा रामानन्द के शिष्य होना चाहते थे, किन्तु वे एक मुसलमान को शिष्यत्व में लेना नहीं पसन्द करते थे। तो भी कवीरकी इच्छा बहुत उद्दाम थी । स्वामी रामानन्द प्रातःकाल कुछ अंधेरे मे ही गंगा स्नान को आया करते थे । एक दिन कवीर छिपकर उन के मार्ग में लेट रहे और इन के शीश पर उनका चरण पड़ गया । बेचारे रामानन्द राम राम कह कर हट गये, किन्तु कबीर ने तुरन्त उठकर कहा कि उन्होंने शीश पर पैर रख कर इन्हें रामनाम का मन्त्र दिया जिस से वे शिष्य होही गये । इन की ऐसी महती इच्छा देखकर स्वामीजी ने इन्हें अपने शिष्यत्व में ले लिया । उसी दिन से इनकी गणना उन के शिष्यों में होने लगी और इन्हों ने रामराम स्वामीजी थे सगुणवादी और कबीरदास समय पर उन्नति करके निर्गुणवादी हो गये । तो भी रामराम शब्द से आपने श्रद्धा न हटाई, किन्तु उसका अर्थ बदल दिया । आप का कथन हुबा कि संसार मे रम् रम् आकारका प्राकृतिक शब्द सदैव का मन्त्र पाया । किन्तु