पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/४७५

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महात्मा कबीरदास ३ हुवा करता है, जो ररंकार का मूल है तथा रामराम ररंकार से पृथक् नहीं है । कुछ लोगों कां विचार है कि कबीरदास झूसी के सूफी सन्त शैख तक के भी शिष्य थे। कबीर कथनों में कुछ सूफ़ी सिद्धान्त आते अवश्य है, किन्तु सूफी विचार इन परमोच्च धार्मिक भावों का एक अंग मात्र था, न कि समग्रांश । आप अपने को रामानन्द का शिष्य खुला खुला कहते भी है किन्तु शैख़ तक़ी का नहीं । यथा, 'काशी में हम प्रगट भये हैं रामानन्द चेताये ' इन पद्यांशांसें प्रकट है कि कबीर रामानन्द द्वारा अपना चेताया जाना कहते तथा तक़ी को अपने विचार सुनाते हैं न कि उन के सुनते । जीवन में कवीर पहले सगुणवादी थे ही, क्योंकि ये निगुरे नहीं रहना चाहते थे तथा रामनाम का मन्त्र सगुणवादी स्वामी- जीसे लेते हैं । फिर भी इनके हज़ारों छन्दों में कहीं सगुणवाद नहीं कथित है, वरन् उन में सब कहीं निर्गुणवाद मिलता है । इस से समझ पड़ता है कि, आप ने धार्मिक विचार परिवर्तित करने के पीछे अपने सारे पद्य बनाये। पहले या तो पद्य रचेही नहींया इन्हे पीछे- से नष्ट कर दिया। इन के बहुत से ग्रंथ उपदेशात्मक मिलते हैं जिन में बीजक और साखी की मुख्यता है । रचनायें इनकी बहुत ही उच्च भाव गर्भित हैं । उन में हिन्दुओं और मुसलमानों दोनों को फटकारें भी काफ़ी मिली है । कवीर पन्थ भी देश में चल रहा है जिस में कई लाख मनुष्य अब भी हैं । इन के १२ शिष्य प्रधान हैं जिन के अनुसार कबीर पन्थ की बारह शाखायें हैं । उन में हिन्दू निर्गुणवादी विचारों की प्रधानता है, किन्तु थोडेसे मुस्लिम विचार भी हैं । वारह प्रधान शिष्यों में एक इन का पुत्र कमाल भी है, जो कभी कभी इन के विचारों की निन्दा तीव्र शब्दों में भी कर देता है । कबीर शुद्ध सन्त थे और अपने को पैगम्बर कहते भी थे । रचना इन की सारी की सारी धार्मिक तथा उपदेशात्मिका है । त्रिमूर्ति