पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/४७६

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४ परमार्थ सोपान अवतार आदि आप नहीं मानते, केवल परब्रह्म परमात्मा का कथन करते हैं । उल्टवासियां भी बहुतेरी कहीं हैं। सीधे अर्थ लगाने से वे कथन प्रायः गर्हित हैं किन्तु धार्मिक भाव निकलने से ऊंबे उपदेश व्यक्त करते हैं । महाराजा रोवा ने भी आपका शिष्यत्व ग्रहण किया था । धरमदास सधन वैश्य ने अपना साग मालमता लुटा कर इनका शिष्यत्व लिया था । कुछ लोगोंका विचार है काशी में मरने- वाला स्वर्ग जाता है तथा मगहर में मरने से कोई मुक्त नहीं होता । कबीर ने कहा, "जो कबिरा कासी मरे, रामै कौन निहोर ? अतएव आप मरने के पूर्व मगहर जाकर वहीं बसे तथा वहीं से दिवंगत हुये । कबीर की रचना धार्मिक विचार से बहुत उच्च कोटि की है तथा साहित्यिक विचार से भी श्रेष्ठ है । ( २ ) महात्मा गोस्वामी तुलसीदास. 33 महात्मा गोस्वामी तुलसीदास कान्यकुब्ज ब्राह्मण राजापूर जिला बांदा में स. १५८९ में उत्पन्न हुये तथा १६८० में पंचत्व को प्राप्त हुये । आपके विषय में आपके दो शिष्यों ने जन्मकाल १५५४ तक ले जाने का प्रयत्न किया है तथा गार्हस्थ सम्बन्धी वहतेरी ऐसी बातें कही हैं, जो स्वयं गोस्वामी जी के कथनों से टक्कर नहीं खाती । इन के कान्यकुब्ज या सरयूपारीए होने पर भी कुछ मतभेद है । हाथरस के तुलसी साहब निर्गुणी सन्त थे जो इन के सौ वर्षों भीतर ही उत्पन्न हुये थे । वे अपने को इन्हीं का अवतार भी कहते हैं । अतएव इन का हाल उन्हों ने ज्ञातही किया होगा । वे इन्हें राजापूर में उत्पन्न कान्यकुब्ज ब्राह्मण कहते हैं। अभुक्त मूलों में उत्पन्न होने से मूर्ख माता पिता द्वारा आप छोड़ दिये गये तथा मुनिया महरी द्वारा पालित हुये। इनकी पांच वर्ष की अवस्था में वह भी मर गई । माता पिता शायद पहलेही मर चुके होंगे और गोस्वामी दाने दाने को