पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/४७८

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w परमार्थ सोपान हिन्दू मत का जो रूप आपने लिखा है वही अवतक प्राचीन मतानुयायी हिन्दुओं में चल रहा है, जिस में आप न केवल हमारे परमोच्च कवि, वरन परमोच्च धर्मोपदेशक भी हैं। इन की रचना में सारे जीवन का विवरण धर्म के उत्कृष्ट रूप में हैं । जनता के विचारों की नाटिका आपने ऐसी पकड़ी थी कि इनके बरावर किसी अन्य सन्त के उपदेशों का मान न हुआ । यद्यपि आर्यावर्त से बाह्य प्रान्तो कश्मीर, पंजाब, बंगाल आदि में मुसलमानी मत बहुत कुछ चल गया, तथापि उत्तर प्रदेश के मुस्लिम शक्ति के केन्द्र होने पर भी यहां हिन्दुत्व ८६ प्रतिशत चलता रहा है । यह बात गोस्वामी तुलसीदास के ही प्रभावपर मुख्यतया अवलम्बित समझी जा सकती है । महाराज मानसिंह आप को बहुत मानते थे तथा खान खाना रहीम से भी आप का मित्रभाव था । समझा जाता है कि उन्हीं की प्रार्थना से आप ने बरवै रामायण लिखी । गोस्वामीजी हमारे सर्वोत्कृष्ट कवि, उपदेशक और सन्त महात्मा थे। नाभादास आप को भक्तमाला का सुमेर कहते थे । (३) महात्मा सूरदास. महात्मा सूरदास जी सारस्वत ब्राह्मण कवि और भक्तशिरोमणि थे । आप का जन्म सं० १५३५ में हुवा था । अपने गुरुवर श्री स्वामी वल्लभाचार्य से आप केवल १९ दिन छोटे थे । सूरदास का शरीरान्त १६३९ से १६४२ पर्यन्त कभी हुवा, ऐसा इस विषय के जाननवालों का विचार है । इन्हीं के ग्रंथ साहित्यलहरी में एक पद इन्ही के नाम से लिखा है, जिस में इन का ब्रह्मभट्ट होना कथित है, किन्तु उस में सं० १५७० के पीछे तक के कथन हैं जिस से वह इन की रचना नहीं हैं । स्वामी हरिराय वल्लभीय कुल के ही तत्कालीन महात्मा थे। आप को सारस्वत ब्राह्मण रामदास के पुत्र बतलाते हैं । .