पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/४७९

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महात्मा सूरदास . आठ वर्ष की ही अवस्था से अपने जन्म स्थान सीही ग्राग के निवासी पिता माता को छोड़ कर आप मथुरा में रहने लगे । कुछ लोग आप को जन्मान्ध कहते हैं किन्तु यह बात इन के द्वारा समचिन सांसा- रिक ज्ञान प्रदर्शन तथा रूप रंगादि के अपूर्व वर्णनों से अग्राह्य समझ पड़ती है । २४ वैष्णवों की वार्ता में आप से सम्राट् अकबर ने भी यही प्रश्न किया, किन्तु वहां उसका कोई उत्तर नहीं कथित है । इन के जन्मान्ध होने का कोई ग्राह्य प्रमाण नहीं है । इन का मुख्य ग्रन्थ सूरसागर है, जिस में अब पांच छै सहस्र से अधिक पद नहीं मिलते । अन्य ग्रथों में सूरसारावली और साहित्यलहरी की मुख्यता हैं । साहित्योत्कर्ष में तुलसीदास जी के पीछे आप हमारे सभी हिंदी कवियों से श्रेष्ठ समझे जाते हैं । आप बालकृष्ण के पूर्ण भक्त थे । सौर कविता वात्सल्य, सखा और सभी भावों की है । आप राम, कृष्ण और विष्णु को एक ही समझते थे । आपने रचना में उपमा, रूपक, नख शिख, प्रवन्धध्वनि एवं अन्य काव्यांगो का अच्छा समावेश किया हैं । प्रिय विषयों के इन के वर्णन बहुतही सांगोपांग अथच सविस्तर हैं । इन के पद गाये बहुतायत से जाते हैं । शिक्षा सदैव उच्च पाई जाती हैं । बाललीला, माखन चोरी, ऊखल बन्धन, रासलीला, मथुरागमन और उद्धव संवाद आप के बहुत उत्कृष्ट और सविस्तर हैं । वर्णन पूर्णता, साहित्यगौरव, बारीकवीनी, रंगों के सम्मिश्रण एवं तत्वभाव तथा भावगरिमा की अच्छी बहार है । भक्तिगाम्भीर्य के साथ ऊंचे विचारों, प्रकृति निरीक्षण एवं मानवशीलगुणावलोकन के अनुभव खूब मिलाये गये हैं | चरित्रचित्रण में अच्छी सफलता है । शृंगारिक लीला धार्मिक एवं माधुर्यमय हैं। इन से पीछे के बहुतेरे कवियों के ऐसे वर्णन अनुचित शृंगार में आ गये हैं, किन्तु सूर की भक्ति सात्विक थी । आप.. लोकादर्शों से च्युत नहीं हुए । विलासी कवि न हो कर आप सन्त थे और भगवान की लीलायें तन्मयता तथा तल्लीनता के साथ गाते थे फिर भी लोक संग्रह की ओर आधिक्य से आप न थे ।.