पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/४८१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

श्री स्वामी रामानन्द ९ की थी, तथा सूर की दासभाव सखा और सखी भावों की । वात्सल्य दोनों में था, किन्तु जीवन के पूर्ण वर्णनों का कमाल तुलसी में अधिक था । (४) श्री स्वामी रामानन्द श्री स्वामी रामानन्दजी एक प्रसिद्ध वैष्णवपंथ के संस्थापक सं. १४४५ के लगभग हुये । यह महाराज सिद्धयोगी हो गये । महात्मा कबीरदास इन्ही के शिष्य थे । उनका जन्म समय सं. १४५५ था सो ये उनसे प्रायः दस वर्ष वड़े होंगे ही। महात्मा तुलसीदास रामानन्द की शिष्य परंपरा में थे । इस सम्प्रदाय के हज़ारों लाखों साधु अवतक हैं । आपने हिन्दी के कुछ भजन भी लिखे हैं । वल्लभाय वालों के समान रामानन्दी सम्प्रदाय से भी हिन्दी को लाभ बहुत हुवा हैं । आप श्री सम्प्रदायवाले महात्मा राघवानन्द के शिष्य थे । उन के गुरु, हरीनक उन के देवाचार्य और उन के स्वयं रामानुजाचार्य ( गुरु ) थे जो सं० १९५० में थे । स्वामी रामानन्द कृत रामरक्षा स्तोत्र और रामानन्दय वेदान्त ग्रंथ कहे जाते हैं । खोज में इन का ज्ञान तिलक भी मिला है । आप प्रयाग निवासी कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे । इन्हों ने भारत का खाला भ्रमण किया, जिससे इन के गुरुवाले शिष्योंने खाने पीने के नियमों का इनके द्वारा उल्लंघन समझ कर इन पर दोषारोपण किया जिस से अप्रसन्न हो कर आप ने अपना पृथक सम्प्रदाय स्थापित कर दिया, जो इतर सम्प्रदायों से अधिकमान के साथ चला | स्वामी रामानुजाचार्य शुद्धों को सम्प्रदाय मे न ले ते थे किन्तु आप ने गृहस्थ लोक थे तो कोई गड़बड़ न डाला किन्तु गृहत्यागियों मे न केवल शूद्रों, वरन कबीर मुसलमानो तक का मान सम्प्रदाय में किया