पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/४८३

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मीराबाई ११. २१२ पर हैं। आप काशीवासी चमार थे, परन्तु भक्ति के कारण इन का वडा मान था । १९०२ की खोज में वानी, साखी और पड़ नामक इन के तीन ग्रन्थ मिले हैं। साहित्योत्कर्ष भी इन का उत्कृष्ट था । जन्म काल सं. १५२५ के निकट समझा जा सकता है | शरीरान्त के समय का पता नहीं है । सं. १५१३ से १६०३ तक रहने वाली मीराबाई के गुरु होने मे आप के दीर्घ जीवी होने का पता चलता है और जन्मकाल भी १५२५ के निकट समझा जाता है। इस बात से इन के गुरु स्वामी रामानन्द का भी दीर्घ जीवा होना समझ पड़ता है । मीराबाई जल्दी से जल्दी १६ वर्ष की अवस्था में इन की शिष्य हुई होंगी । उस समय आप अधिक से अधिक ६५ वर्ष के होंगे, जिस से इन का जन्मकाल सं० १५२५ समझ पड़ता है। उधर स्वामी रामनन्द का जन्मकाल कवीर वाले शिष्यत्व के कारण सं० १४५५ समझ पड़ता है, तथा रैदास के शिष्यत्व से आप का प्रायः १५४० तक वर्तमान रहना माना जा सकता है । (६) मीराबाई मीराबाई मेड़तिया ( राजस्थान ) के राठौर रत्नसिंहकी पुत्री थी । जोधपुर वसानेवाले प्रसिद्ध रावजोधाजी इन के प्रपितामह थे । मीराबाई का जन्म सं. १५१३ में चोकडी ग्राम में हुआ । विवाह उदयपूरके महाराना कुमार जोधराज के साथ हुआ । भक्ति इनकी इतनी प्रगाढ़ थी कि सांसारिक संबंधोको तुच्छ मानकर श्रीकृष्ण चंद्र को अपना पति समझती थी। मायके और ससुराल दोनों में परम संपन्न होकर भी आप कभी पलंगपर नही शयन करती और सदैव पृथ्वीपर मृगचर्म बिछाकर रहती थी । इसी भांति हरवात में ऋषयों का सा आचार रखती और आनन्द में मग्न होकर मंदीरों में प्राथ: