पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/४८४

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१२ परमार्थ सोपान भगवान के सामने नाचती और गाती थी । इससे स्वजन रुष्ट रहते और इनके वालविधवा होनेसे, ऐसे भक्तिपूर्ण आचरणोंसे अपना अपमान समझते थे । उन्होंने इनके मारने के भी कई गुप्त प्रयत्न किये किन्तु इनकी सदा रक्षा हुई । भजनानंद में उन्मत्त होकर यह दूर दूर निकल जाती थी । आपने द्वारकाजी तथा वृंदावनके तत्कालीन प्रसिद्ध मंदीरों को अपने भजनों द्वारा सम्मानित किया। जहां गई, वही इनका वडा सत्कार हुवा, क्यों कि भक्तजन एवं और लोग भी इनको बडी आदरकी दृष्टिले देखते और साक्षात देवीकी भांति पूज्य मानते थे । ये सब बातें जानकर राणाजीकों अपने कुव्यवहारोंपर बडा पश्चाताप होता था । नरसीजीका भव्य गीत गोविंद की टीका, राग सोरठा पद और राग गोविंद नायक इनके चार ग्रंथ हैं । " भजन मीराबाई " नामक इनका एक संग्रह ग्रंथ भी है। इनके पदों में प्रगाढ़ भक्तिका चित्र देख पड़ता है । पद प्रायः " गिरीधर नागर " को संबोधित हैं । उधर के प्रसिद्ध ऐतिहासीक मुंशी देवीप्रसादने इनके तीन ग्रंथ माने हैं । इनका शरीरान्त सम्वत १६०३ में हुआ । उन्हीं के खोजों के आधार पर उपर्युक्त बहुत सी घटनायें लिखी गई हैं । साधारण हिन्दू समाज पर कुछ पौराणिक स्त्रीयों कां छोड़कर भारतकी किसी अन्य स्त्री का प्रभाव मीराबाई के वरवर नही पडा है । भक्त शिरोमणि नाभादास, ध्रुवदास व्यासजी, भगवत रासिक मलूकदास, राजा नागरीदास आदि सभी महात्माओंने बड़े आदर के साथ भक्तों में मीरा का नाम लिखा है तथा जीवन चरित्र का वर्णन किया है। रणछोरजी के मन्दिर में भगवान के साथ मीराबाई की भी पूजा होती है । यह अचल भक्ति की थाप कर गई हैं । आपकी भाषा राजपूतानी मिश्रित व्रजभाषा है। इन के पदों में कहीं कहीं कुछ अश्लीलता भी आगई है, किन्तु वह है सात्विक । विष्णु स्वामी तथा निम्बार्क स्वामी के मतोंका भी प्रभाव इन पर कहा जाता है । ग्रंथ में इनके पदों के उदाहरण ८०, ८४, १४४, १४८, १५०