पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/४८९

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महात्मा नानक १७ य दादू पन्थियों का मुख्य स्थान है । यहां आपके कपड़े और ग्रन्थ अब भी रक्खे हैं । दादू दयाल की रचना निर्गुण पन्थी हो कर भी साहित्यिक प्रौढ़ता से ओतप्रोत है । यद्यपि वह तुलसी, सूर आदि- वालोंकी रचना के समान लोक स्वीकृति न पा सकी, क्यों कि निर्गुणी रचनावों के लिये साहित्यिक भाव प्रायः कुछ फीके आते हैं । (१२) महात्मा नानक. महात्मा नानका सिक्ख मत के संस्थापक सिद्ध योगी थे ! आप का समय सं. १५२६ से १५९६ तक है । आप क्षत्री कुलभूषण थे और बालवय से धार्मिकता तथा त्याग की ओर अनुरक्त थे । आपने यात्रायें दूर दूर तक कीं। भारत के अतिरिक्त मुसलमानी तीर्थस्थान मक्के को भी गये । सभी कहीं अमूल्य उपदेश देते रहे। इन के कुछ मुसलमान शिष्य भी थे। इनके द्वारा कई अप्राकृतिक घटनावका भी होना कहा जाता है, जैसे कथन प्रायः अनेकानेक धार्मिक उपदेशक के विषय में होते हैं । आपने ग्रन्थ साहब का निर्माण आरम्भ किया, जिस में अनेकानेक तत्कालीन सन्तो की रचनात्रों को भी सन्निविष्ट किया। स्वयं इन की रचनायें तो उस में घाहुल्य से थीं ही । धार्मिक उपदेश आपके हिन्दु- मुस्लिम मतों के विरोध हटाने के प्रयत्न में होते थे' तथा निर्गुण विचारोंपर आधारित थे, यद्यपि रामनामके जप पर भी वल लगाया गया है । इस ग्रन्थ में इन के उदाहरण पृष्ठ ४२ तथा १२४ पर हैं । दश सिक्ख गुरु हो गये हैं जो सन्त होने के अतिरिक राजनितिक प्रश्नों पर भाग लेनेसे युद्धों में भी कूदे। यह दशा पीछे के कई गुरुवों की थी । ग्रन्थसाहब के निर्माण में दशों में से कई गुरुवों के हाथ हैं अन्तिम महात्मा गुरु गोविन्दसिंह ने भविष्य के लिये यह गुरु गद्दी