पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/४९६

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परमार्थ सोपान ir 'रहिमन मोहि न सोहाय अभी पियावै मानविन | वर विष देय वोलय, मान सहित मरिवो भलो ॥ रहिमन हिला कीभली, जो परसै चितु लाय! परसत मन मैले करें सो मैदा जरि जाय ॥ काम न काहू आवई, मोल रहीम न लेय । बाजू टूटे बाज को, साहेव चारा देय ॥ 'अब रहीम मुसकिल परी, गाढे दोऊ काम । सांचे से तौ जग नहीं, झूठे मिलें न राम ॥ जे गरीब को आदरें ते रहीम बड लोग । कहा सुदामा वापुरो कृष्ण मिताई जोग | जो रहीम करिये हुतो व्रज को यही हवाल | तौ काहेकर पर घरयो, गोवरधनगोपाल ॥ रहिमन को कोइ का करै, ज्वारी चोर लवार। जो पति राखनहार हैं माखन चाखनहार ॥ छिमा बडेन को चाहिये छोटेन को उतपात । का रहीम हरि को घटो जो भृगु मारी लात रहिमन बिगरी आदि की बनैन खरचे दाम | हरि वाढ आकास तौ छुटो न वावन नाम ।। कमला थिर न रहीम कहि, यह जानत सव कोय । पुरूषपुरातन की वधू, क्यों न चंचला होय ॥ इनका शरीरान्त सं० १६८४ में हुवा । " ॥