पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/५१०

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12 तौक पहिरावौ पाँव बेडी ले भरावौ, गाढ़े बंधन बन्धावौ, ओ खिचाओ काची खाल सो .... गिरि ते गिरावौ, कारे नाग ते डसावो, हा ! हा !! प्रोति न छुड़ावौ गिरिधारी नंदलाल साँ -I-3-16 In this respect we may compare the Bhagawad- gita on a superior level :- वक्त्राणि ते त्वरमाणा विशन्ति दंष्ट्राकरालानि भयानकानि केचिद्विलग्ना दशनान्तरेषु सन्दृश्यन्ते चूर्णितैरुत्तमाङ्गैः ॥ 5. भक्त्यन्तर्गतं वीररस. - गीता XI - 27 उत्साह is the स्थायिभाव of वीररस. Compare: — (१) नौकरी शरिअत से करना । हुकुम परि मुरशिद का रखना .... अखी लगाकर मार निशानी। पीछे मत हटना P99 सीढ़ी पकड़ कर चढ़ना बेटा । धीरज से गढ़ लेना ॥ 6. भक्त्यन्तर्गत वीभत्सरस. -I-4-14 वीभत्स रस looks like a contradiction in terms. बीभत्स seems to be just the opposite of रस to the extent of hideousness, yet it may be called it produces वैराग्य, which is the result of जुगुप्सा, घृणा, or निर्वेद which are in स्थायिमावs of वीभत्स. (a) जुगुप्सा - हाड़ जरें ज्यों लाकड़ी केस जरें ज्यों घास जगत पजरता देखि के, कविरा भया उदास -II-1-6 if