पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/५१९

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, 1. उपमा (a) पुष्प मध्य जिमि वास बसत है, मुकुर मँह जैसे छाई तैसे ही हरि यसै निरंतर 21 घट ही खोजो भाई । -I, 3.8 (b) करउँ सदा तिन्ह के रखवारी जिमि बालक राखइ महतारी । -I. 2. 15 (c) तुलसी मूरति रामकी, घट घट रही समाय ज्यों मेहँदी के पात में, लाली लखी न जाय । 2. रूपक - (a) निराकार की आरसी, साधो ही की देह -- II. 3. 3 लखा जो चाहे अलख को इस ही में लखि लेह ।. --II 3. 13 Expressions such as परम्परितरूपक, साङ्गरूपक, साव- यवरूपक and मालारूपक have been rejectedt in favour of the expression महारूपक. 3. निगरणालंकार -- . We have rejected the term रूपकातिशयोक्ति in favour of निगरण. We have counted upon the expres- sion 'निगीर्याध्यवसान', from which we have taken this term निगरण. (a) झीनी झोनी वीनी चदरिया सो चादर सुरनरमुनि ओढ़ी, ओढ़ि के मैली कीनी चदरिया | दास कबीर जतन कारे ओढ़ी, ज्यों की त्यों धर दीमी चदरिया || चादर here implies ' body '. --I. 2. 8