पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/५२२

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24 7. अन्योक्ति - (') We reject the term अप्रस्तुतप्रशंसा in favour of अन्योक्ति. उपल बरसि गरजत तरजि, डारत कुलिस कठोर चितव कि चातक मेघ तजि, कबहुँ दूसरी ओर --II. 4. 30. चातक here stands for an अनन्यभक्त. चातक is the usual symbol employed in all Indian literatures for illustrating अन्योक्ति. The whole of Tulsidas's चातक- चौतीसा is a superb example of continued अन्योक्ति, We may compare with this the Sanskrit verse - रे ! रे ! चातक सावधान मनसा मित्र क्षणं श्रूयताम् अम्भोदा बहवो वसन्ति गगनेः सर्वेऽपि नैतादृशाः । केचिद् वृष्टिभिरार्द्रयन्ति धरण, गर्जन्ति केचिद् वृथा यं यं पश्यसि तस्य तस्य पुरतो मा ब्रूहि दीनं वचः ॥ 8. तुल्ययोगिता and दीपक 1 -- भर्तृहरि वै. शतक. which imply respectively (1) equality of all, and (2) excellence of one. Respective examples: (a) कदली सीप भुजंग मुख, स्वाति एक गुण तीन जेसी संगत होयगी, तैसों ई फल दीन -11.2.2 (b) सिंहों के लैहड़े नहीं, हंसों की नहीं पाँत लालों की नहीं बोरियाँ, साधुं न चलै जमात 9. उल्लेख - -II-3-2 This has been defined and illustrated in चन्द्रालोक, the basis of Appaya Dixit's कुवलयानन्द, as follows :-