पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/५२३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

25. बहुभिर्वहुधोल्लेखादेकस्योल्लेख इष्यते । स्त्रीभिः कामोऽर्थिभिः स्वर्दुः कालः शत्रुभिरक्षि सः ॥ Illustration from परमार्थसोपान - जिन्हकै रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी । डरे कुटिल नृप प्रभुहिं निहारी मनहुँ भयानक मूरति भारी । . विदुषन प्रभु विराटमय दीसा वहुमुख कर पग लोचन सीसा सहित विदेह विलोकहिं रानी सिसुसम प्रीति न जाइ वखानी ॥ Compare also the description of -I-3-5 in the भागवत which in its language and ideas seems definitely to be the proto-type of तुलसीदास मल्लानामशनिर्नृणां नरवरः स्त्रीणां स्मरो मूर्तिमान् - गोपानां स्वजनोऽसतां क्षितिभुजां शास्ता स्वपित्रोः शिशुः । मृत्युर्भोजपतेर्विराट् सुविदुषां तत्रं परं योगिनां वृष्णीनां परदेवतेति विदितो रङ्गं गतः साग्रजः : भाग १० - ४३ - ९६ Compare and contrast तुलसीदास's विदुषन प्रभु विराटमय दीसा and भागवत' विराडविदुषाम्. There seems to be some mistake in the reading of the भागवत which ought to be somewhat like विराट् सुविदुषाम् ; otherwise अर्जुन would be an ignoramus ( अविद्वान् ) .