पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/५२९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

illustrations from परमार्थसोपान-- राम हि चितव सुरेस सुजाना गौतम शाप परम हित माना । देव सकल सुरपति हि सिहाहीं आजु पुरन्दर सम कोउ नाहीं ॥ 23. समुच्चय- गोरस वैचत हरि मिलें, एक पंथ दो काज । 24 अन्योन्य--. 新 मझधारा का माँझी हूं, तुम भवसागर के केवट हो । मैं सुरसरि पार उतार दिया, भवसागर पार लगा देना || -I. 1-7. -II. 3-11. 31 समाप्तम् -I- 3-11,