पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/६१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

Pada 1] Incentives. ३ CHAPTER 1 Incentives to Spiritual Life. (१) अनुवाद ( मैं ) धोखे ही धोखे से ठगा जाता रहा । बात समझ में न आई | विषय - रस में फँस गया । घर के मध्य हरिरूपी हीरा खो दिया । अवनि को जल समझ कर कुरंग के समान दसों दिशाओं में दौड़ता रहा; किन्तु प्यास नहीं बुझी । जन्म जन्म में अनेक कर्म किये हैं । उनमें अपने आपको बँधा दिया । शुक की तरह सेमर के फल की आशा में लग कर रात दिन हठ करके फल पर चित्त लगाया; किन्तु जब फल पर चोंच लगाई, तो तूल उड़ गया । फल खाली पड़ गया और संताप हो गया । जैसे बाजीगर कपि को डोरीसे बाँध कर कण- ऋण के लिये चौहटे पर नचाता है, उसी प्रकार मैं नचाया गया । सूरदास कहते हैं कि भगवान के भजन के बिना अपने को काल रूपी व्याल का भक्ष्य बना दिया ।