पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/६२

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४ परमार्थसोपान [ Part I Ch. 1 2. ON UNIVERSAL BLINDNESS

केहि समुझावों सब जग अन्धा ॥ टे ॥ इक दुइ होयँ उन्हें समुझात्रौं सहि भुलाने पेटके धन्धा पानी घोड़ पवन असवरवा, दरकि परे जस ओसक बुन्दा ॥ १ ॥ गहिरी नदी अगम हैं धरवा, खेवनहार के पड़िगा फन्दा | घर की वस्तु नजर नहिं आवत, दियना बारि के ढूँढ़त अन्धा ॥ २ ॥ लागी आगि सबै वन जरिगा, विन गुरुज्ञान भटकिगा बन्दा | कहै कबीर सुनो भाई साधो, जाय लिङ्गोटी झारि के बन्दा ॥ ३ ॥