पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/७१

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Pada 6] Incentives. १३

(६) अनुवाद. प्रभु, अपने विरद की लाज रखिये । मैं ऐसा महापतित हूँ कि तनिक भी तुलारे काम नहीं आया । इस धाम, धन और वनिता रूप सवल माया की सजावट में अपने को बाँध लिया है। देखता हूँ, सुनता हूँ, सब कुछ जानता हूँ । फिर भी उससे दूर नहीं हुआ । कहा जाता है कि तुमने बहुत पतितों को तारा है । ( मैंने भी ) अपने कानोंसे ऐसी वाणी सुनी है । जहाज़ पर चढ़ना चाहता हूँ; पर केवट की उतराई नहीं दी जाती । मैं आपसे कोई नई चीज़ करने के लिये नहीं कहता हूँ । हे प्रभु! तुम सदा गरीबों पर कृपा करनेवाले हो । हे महाराज ब्रजराज ! सूरदासको पार उतार लीजिये !