पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/७०

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१२ परमार्थसोपान [ Part I Ch. 1 6. GOD IMPLORED FOR DELIVERANCE FROM APPEARANCE AND SIN कीजै प्रभु अपने विरद की लाज ॥ दे | महा-पतित कबहूँ नहिं आयौं, नैकु तिहारे काज माया सबल धाम धन वनिता, बाँध्यो हौं इहि साज देखत सुनत सबै जानत हौं, तऊ न आयौ ँ वाज ॥ १ ॥ ॥ २ ॥ ' 11 3 11 कहियत पतित बहुत तुम तारे, स्रवननि सुनी अवाज 11.811 दड़ न जात केवट उतराई, चाहत चढ्यौ जहाज 114 11 नई न करन कहत प्रभु तुम हौ, सदा गरीब निवाज 11 & 11 लीजै पार उतारि सूर कौं महाराज व्रजराज ॥ ७ ॥