पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/७३

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Pada 7] incentives. १५ (७) अनुवाद. शङ्करजी रामरूपमें अनुरक्त हुए, और उन्हें अपने पन्द्रह नयन अतिप्रिय लगे । राम की छवि देखकर ब्रह्मदेव हर्षित हुए और अपने आठ ही नयन जान कर पछताये । पड़ानन को अपने हृदय में बहुत उत्साह हुआ क्योंकि उन्होंने ब्रह्मदेव से ड्योढे नयनों का लाभ उठाया । चतुर इन्द्र ने राम को देखकर गौतम ऋषि के शाप को परम हितकारी मान | देवगण इन्द्र की बढ़ाई करने लगे कि आज पुरंदर के समान कोई नहीं ।