पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/७८

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२० परमार्थसोपान [ Part I Ch. 1 10. ON THE VANITY OF HUMAN LIFE. क्या तन माँजता रे, इक दिन मिट्टी में मिल जाना छैला बन कर फिरै बाग में, धर पगड़ी में फूल | लगा झपेटा काल का, जाय चौकड़ी भूल जब लगि तेल दिया में बाती, ॥ टे ॥ 112 11 जगमग जगमग होय | चुक गया तेल विनस गई बाती ले चल ले चल होय ॥ ३ ॥ घर की तिरिया झिरझिर रोवै, बिछुड़ गई मेरी जोड़ी | प्रभुदास तवं उठि यों बोलै, जिन जोड़ी तिन तोड़ी ॥३॥