पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/८७

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Pada 14] Incentives २९ (१४) अनुवाद. रे मन ! जन्म बेकार जा रहा है । बिछुड़ने पर तरुवर की पत्तियों की तरह फिर मिलन नहीं होगा । सन्निपात में कफ कण्ठ-निरोध करता है । रसना रुक जाती है । यम प्राण लेकर जाता है । माता-पिता मूढमति होकर देखते हैं। एक क्षण कोटि युगों के समान व्यतीत होता है । जग के लिये तेरी यह प्रीति सेमर के लिये सुग्गे की प्रीति की तरह है । चोंच लगाते ही तूल उड़ जाता है । रे बावले, यम के फन्दे में मत पड़ । चरणों में चित्त लगाता रह | सूर कहते हैं, कि यह देह वेकार है । तू हृदय में इतना घमण्ड क्यों करता है ?