पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/८६

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२८ परमार्थसोपान [ Part I Ch. 1 14. SPIRITUAL LIFE AS ALONE CAPABLE OF SAVING ONE FROM HELPLESS SUBMISSION TO DEATH. रे मन जनम अकारथ जात ॥ दे ॥ बिछुरे मिलन बहुरि नहिं होवे, ज्यों तरुवर के पात सन्निपात कफ कण्ठ निरोधी, रसना टूटी जात । प्रान लिए जम जात मूढमति देखत जननी तात छिन इक माहि कोटि जुग बीतत, फेरि नरक की बात | यह जग प्रीति सुआ सेमर की, चाखत ही उड़ि जात जम के फन्द नाहिं पड़ चौरे, पडु चरनन चित्त लगात | कहत सूर विरथा यह देही ॥ १ ॥ ॥२॥ ॥ ३ ॥ अन्तर क्यों इतरात 11811