को भी चुनती और वास्त करती थी। गोत्र के किसी सदस्य के मारे जाने पर वह प्रायश्चित के रूप में भेंट लेने या रक्त-प्रतिशोध का निर्णय करती थी। वह अजनबियों को गोत्र का सदस्य बनाती थी। साराश यह कि वह गोन को सार्वभौम गत्ता थी। एक ठेठ इंडियन गोत्र के ये ही अधिकार थे। "इरोस्वाई गोत्र के सभी सदस्य व्यक्तिगत रूप से स्वतंत्र होते थे, और एक दूसरे की स्वतंत्रता की रक्षा करना उनका कर्तव्य समझा जाता था। उन्हें समान सुविधाएं प्राप्त थी और उनके ममान व्यक्तिगत अधिकार होते थे। सायेम या युद्ध-काल के नेता को कोई विशेष अधिकार नही प्राप्त थे। ये लोग रक्त-सम्बन्ध के बंधन मे जुड़े एक भ्रातृसंघ के समान थे। स्वतंत्रता, समता और बंधुत्व - ये गोत्र के मुख्य सिद्धान्त होते थे, यद्यपि किसी ने उनकी इस रूप में स्थापना नहीं की थी। गोत्र समाज-व्यवस्था की एक इकाई था, वह बुनियाद था जिस पर इडियन समाज खड़ा था। आत्मसम्मान और स्वतन्त्रता की वह भावना, जो सर्वत्र इंडियनो के चरित्न की विशेषता थी, इसी की उपज थी। . "80 जिस समय इंडियनों का पता लगा, उस समय वे उत्तरी अमरीका में हर जगह मातृसत्तात्मक गोत्रों में संगठित थे। डैकोटा जैसे चन्द कबीले ही ऐसे थे जिनमे गोत्र-व्यवस्था जर्जर हो गयी थी। प्रोजिब्वे और प्रोमाहा जैसे कुछ दूसरे कबीले पितृ-सत्ता के अनुसार संगठित थे। इंडियनो के बहुत-से ऐसे कबीले थे जिनमे से हर एक के पाच-पाच छ:-छ: से अधिक गोत्र थे। इन कवीलो मे तीन-चार या उससे अधिक संख्या मे गोन एक विशेष समूह मे सयुक्त होते है। उसे मोर्गन ने - इडियन नाम को हूबहू यूनानी भाषा में अनुवाद करके -"फ्रेटरी", अर्थात् बिरादरी कहा है। इस प्रकार सेनेका कवीले मे दो बिरादरियां है, पहली मे एक से चार नम्बर तक के गोत्र शामिल है और दूसरी मे पाच से आठ नम्बर तक के। अधिक निकट से खोज करने पर पता चलता है कि ये विरादरिया, मुख्यतः शुरू के उन गोत्रो का प्रतिनिधित्व करती है जिनमे कवीला सबसे पहले विभाजित हुआ था। क्योकि जब गोत्रो के भीतर विवाह करने की मनाही कर दी गयी, तो हर कवीले के लिये आवश्यक हो गया कि उसमे कम से कम दो गोत्र हों ताकि कबीला अपना स्वतन्त्र अस्तित्व कायम रख सके। ११२
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