. एक सी भाषा इस बात की सूचक और सबूत थी कि पाची कबीले एक ही वंश के है। २. महासंघ के अंग के रूप में एक संघ-परिषद् होती थी जिसके सदस्य पचास सालेम थे। इन पचासों का पद और प्रतिष्ठा समान थी। महासंघ से सम्बन्धित सभी मामलो में अन्तिम फैसला यह परिपद् करती थी। ३. जिस समय महासंघ बना, उस समय ये पचास साखेम नये पदाधिकारियों के रूप मे-इन पदों की महासंघ के उद्देश्यों को ध्यान में रखकर सृष्टि की गयी थी-विभिन्न कबीलो और गोत्रो मे बांट दिये गये थे। जव किसी पदाधिकारी का स्थान खाली हो जाता था, तो सम्बन्धित गोन फिर से उसके लिये चुनाव कर लेता था; गोत्र उसे किसी भी समय पद से हटा सकता था। परन्तु उसका अभिषेक करने का अधिकार संघ- परिषद् के हाथ में रहता था। ४. ये संघीय साखेम अपने-अपने कबीलो मे भी साखेम थे, और उनमें से हर एक को अपने कबीते की परिषद् में भाग लेने और वोट देने का अधिकार था। ५. संघ-परिपद् के लिये आवश्यक था कि वह सभी फैसले सर्वसम्मति से करे। ६ . वोट कवीलेवार ली जाती थी, यानी हर कबीले को, और संघ- परिषद् के हर कवीले के सदस्य को एकमत होना पड़ता था, तब यही जाकर ऐसा फैसला होता था जिसको मानना सब के लिये जरूरी होता था। ७. पांचों कबीलों की परिषदों में से कोई भी संघ-परिपद् की बैटक बुलवा सकती थी, परन्तु संघ-परिपद् को स्वयं अपनी बैठक बुलाने का कोई अधिकार न था। ८. संघ-परिषद् की बैठक जनता की ग्राम सभा के समक्ष होती थी। प्रत्येक इरोक्वा को बोलने का अधिकार था; फैमला सिर्फ परिषद् करती थी। ६. महासंघ का कोई अधिकृत अध्यक्ष, भोई प्रमुग कार्याधिकारी नही होता था। १०. परन्तु उसके दो मवोच्च युद्ध-काल के नेता अवश्य होते थे, जिनकी गमान गति और गमान अधिकार होते थे (स्पार्टावागियों के दो "राजा" और रोम में दो कोमिल)। 00 १२०
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