पृष्ठ:परिवार, निजी सम्पत्ति और राज्य की उत्पत्ति.djvu/१२३

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देते है। धृणित लोम, पाशविक काम-वासना, ओछी लोलुपता, सामूहिक सम्पति की स्वार्थपूर्ण लूट-खसोट - ऐसी ही कदर्थतम भावनाए नये, सभ्य समाज , वर्ग-समाज को रंगमंच पर लाती है। चोरी, बलात्कार, छल-कपट और विश्वासपात जैसे घृणित से घृणित तरीको से पुराने , वर्ग-विहीन गोन- समाज की जड़ खोदी जाती है और उसे ढहाया जाता है। पिछले ढाई हजार वर्षों से जो नया समाज कायम है, उसमे विशाल बहुसंख्या , शोपित और दलित जनता के मत्थे थोड़े-से लोगो के फूलने-फलने के अलावा और कुछ नही हुआ है। और आज तो ऐसा हमेशा से ज्यादा हो रहा है।