. a'y पर इन तथ्यों (1 वाखोफेन की पुस्तक वंश पिता के नाम से नहीं, बल्कि माता के नाम मे चलता है, और इसलिये उनमे केवल स्त्री-परम्परा ही वैध मानी जाती है। वर्तमान काल की बहुत-सी जातियो में कतिपय निश्चित प्रकार के बड़े-बड़े समूहों में विवाह करने पर बधन लगा हुआ है, और यह प्रथा संसार के सभी भागो में पायी जाती है, हालांकि उनके विषय मे उम वक़्त तक अधिक निकट से खोज नहीं की गयी थी। इन तथ्यो की उस समय भी लोगों को जानकारी थी और उनके नित नये उदाहरण प्रकाश मे पा रहे थे को लेकर क्या किया जाये , यह कोई नही जानता था। यहां तक कि ई० anto TST al geare Researches into the Early History of Mankind, etc (१८६५) मे इन बातो को उसी तरह की "विचित्र प्रथाओं" की श्रेणी मे डाल दिया गया , जैसे कुछ जागलियो में जलती लकड़ी को लोहे के औजारो से छूने के निषेध की प्रथा या ऐसी ही अन्य धार्मिक मूर्खताओं को। परिवार के इतिहास का अध्ययन १८६१ से आरम्भ हुआ जबकि मातृ-सत्ता" प्रकाशित हुई थी। इस रचना मे लेखक ने नीचे लिखी प्रस्थापनामो को पेश किया है : (१) प्रारम्भ मे मानवजाति यौन-स्वच्छन्दता की अवस्था में रहती थी जिसे लेखक ने दुर्भाग्य से “हैटेरिज्म" (hetaerism) का नाम दे दिया है; (२) इस स्वच्छन्दता के कारण किसी के भी बारे मे निश्चय के साथ नहीं कहा जा मकता था कि उसका पिता कौन था, इसलिये वंश केवल माता के नाम से - मातृ-सत्ता के अनुसार ही- चल सकता था, मे प्राचीन काल की सभी जातियो मे यह वात पायी जाती थी ; (३) चूकि नयी पीढ़ी की केवल माताप्रो के बारे मे ही निश्चय हो सकता था, स्त्रियो का बहुत आदर और सम्मान किया जाता था, जो बाखोफेन के विचार में इतना बढ गया था कि पूरा शासन ही स्त्रियो के हाथ मे था (gynaecocracy); (४) एकनिष्ठ विवाह की 'प्रथा के, नारी पर केवल एक पुरुष का अधिकार माना जाता था, जारी होने का अर्थ आदिम धार्मिक आदेश का उल्लंघन था (अर्थात् वास्तव में, एक ही स्त्री पर अन्य पुरुषो के प्राचीन परम्परागत अधिकार का उल्लघन था), और इसलिये , इम उल्लघन की क्षतिपूर्ति के लिये या उसके प्रति महिष्णुता का मूल्य चुकाने के लिये पति को स्त्री को एक निश्चित समय के लिये पर-पुरुषो के मामने ममर्पित करना पड़ता था। और शुरू इसलिये जिसमे १४
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