फी नस्ल थी। प्रवल जमीदारों तथा पराधीन किसानों के सम्बन्ध, जो रोमनो के प्राचीन जगत् के पतन के निराशापूर्ण रूप ये, नयी नस्ल के लिये एक नये विकाम का प्रारम्भिक विन्दु बन गये। इसके अलावा, ये चार सौ वर्ष वैसे भले ही अनुत्पादक प्रतीत हो, पर वे एक बड़ी उपज छोड गये, और वह है आधुनिक जातिया। यानी वे पश्चिमी यूरोप की मानवजाति को नये रूप में ढालकर और उसका नया विभाजन करके अागामी इतिहास के लिए उसे तैयार कर गये। दर असल जर्मनो ने यूरोप में नया जीवन फूक दिया था। और यही कारण है कि जर्मन काल में राज्यो के भंग होने के परिणामस्वरूप नौस-सैरेसेन प्राधिपत्य नहीं कायम "बेनीफिम" और सरपरस्ती (commendation)157 की प्रथा ने बढकर सामन्तवाद का रूप धारण किया और जनसंख्या मे इतनी तेजी से वृद्धि हुई कि इसके मुश्किल से दो सदी बाद धर्मयुद्धों-क्रुसेडों-मे जो जो वेतहाशा खन वहा, उसे भी समाज विना हानि उठाये बर्दाश्त हुमा, बल्कि कर सका। सभी मरणासन्न यूरोप में जर्मनी ने किस गुप्त मनबल से नया जीवन फूका था? क्या वह जर्मन नस्ल के अंदर छिपी हुई कोई जादूई ताकत थी, जैसा कि हमारे अंधराष्ट्रवादी इतिहासकार कहना पसंद करेगे ? हरगिज नही। इसमें शक नहीं कि जर्मन लोग एक बहुत प्रतिभाशाली आर्य कबीले के थे, जो उस वक़्त खास तौर पर पूरी तेजी से विकाम कर रहा था। परन्तु जिस चीज़ ने यूरोप में नयी जान डाली, वह उनका विशिष्ट जातीय गुण नही, बल्कि उनकी वर्बरता,. उनकी गोन-व्यवस्था थी। उनकी व्यक्तिगत योग्यता और वीरता, उनका , स्वातंत्र्य-प्रेम , सार्वजनिक कामो को अपना समझने की उनकी जनवादी प्रवृत्ति - संक्षेप में, वे तमाम गुण जिन्हे रोम के लोग खो चुके थे और जिनके विना रोमन संसार की कीचड़ में से नये राज्यों का निर्माण और नयी जातियो का पैदा होना असम्भव था-वे यदि बबर युग को उन्नत अवस्या को विशेषताएं और गोन-व्यवस्था के फल नहीं, तो और क्या थे? यदि जर्मनो ने एकनिष्ठ विवाह के प्राचीन रूप को बदल डाला परिवार में पुरष के शासन को ढीला किया और स्त्री को इतना ऊंचा स्थान दिया जितना प्राचीन संसार में कभी नहीं था, तो जर्मनी में यह सब . २००
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