ऐमा नया साधन तैयार हो गया जिमके द्वारा पैदा न करनेवाला, पदा करनेवालो तथा उनकी पैदावार पर शासन कर मकता था। मालो के उम माल का पता लग गया जो अपने अन्दर अन्य सभी मालो को छिपाये रहता है, वह जादू की पुड़िया मिल गयी जिसे इच्छा होते ही हर उम चीज़ में बदला जा सकता है जो इच्छित हो, या जिसकी इच्छा की जाये। वह जिमके पास होती थी, उत्पादन के संसार में उसी का बोलबाला होता था। और सबसे ज्यादा वह किसके पास होती थी? व्यापारी के पास । मुद्रा-पूजा उसके हाथो में सुरक्षित थी। उसने पूब अच्छी तरह साफ कर दिया था कि मुद्रा के सामने सभी मालों को, और इसलिये माल के सभी माल उत्पादको को, नाक रगड़नी पड़ेगी। उसने व्यवहार में सिद्ध कर दिखाया कि इस साक्षात् मूर्तिमान धन के सामने धन के अन्य सभी रूप केवल दिखावा मात्र है। मुद्रा को शक्ति फिर कभी उस प्रादिम भोडे एवं हिमक रूप में प्रकट नही हुई जिस रूप में वह अपने शैशव में प्रगट हुई थी। मुद्रा के बदले में मालो को विक्री होने लगने के बाद मुद्रा उधार देना और उस पर व्याज लेना व सूदखोरी शुरू हुई। और प्राचीन एथेस तथा रोम कानूनी ने कर्जदार को जिस तरह निर्ममता से और लाचार हालत में सूदखोर महाजनो के चरणो मे डाल दिया था, वाद के किसी काल के कानूनों ने वैसा नहीं किया। और एथेंस तथा रोम , इन दोनों जगहो के कानून आप उत्पन्न हो गये थे, वे सामान्य कानून थे और उनके पीछे आर्थिक कारणों के अलावा और किसी तरह का जोर न था। तरह-तरह के मालों तथा दासो के रूप में और मुद्रा के रूप मे तो धन था ही, उसके अलावा जमीन के रूप में भी धन का आविर्भाव हुमा। अलग-अलग व्यक्तियो को जमीन के जो टुकडे शुरू मे अपने गोतो या कबीलो से मिले थे, अब उन पर उनका अधिकार इतना पक्का हो गया था कि ये टुकड़े उनकी वंशगत सम्पत्ति बन गये। इसके पहले वे जिस चीज़ की सबसे ज्यादा कोशिश कर रहे थे, वह यह थी कि जमीन के उनके टुकड़ो पर गोव-समुदाय का जो दावा था, किसी तरह उससे छुटकारा मिल जाये, क्योकि वह उनके लिये एक बंधन बन गया था। वे इस बंधन से मुक्त हो गये। पर उसके कुछ समय बाद उन्हें अपनी नयी भू-सम्पत्ति से भी मुक्ति मिल गयी। जमीन पर व्यक्तियों का पूर्ण व स्वतन्त्र स्वामित्व होने का अर्थ केवल यही नही था कि भूमि पर उनका अबाधित और असीमित कब्जा अपने , २१४
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