तथा देहात के अन्तर को और भी गहरा करके (या तो प्राचीन काल की - तरह शहर का देहात पर आर्थिक आधिपत्य रहता था, या मध्य युग की
- तरह शहर पर देहात का आर्थिक प्रभुत्व कायम हो जाता था ); और
। एक तोमरा थम-विभाजन भी जोड़ दिया जो सभ्यता के युग की अपनी विशेषता है और निर्णायक महत्त्व रखती है : उसने एक ऐसा वर्ग उत्पन्न किया जो उत्पादन मे कोई भाग नहीं लेता था और केवल पैदावार के विनिमय का काम करता था। यह व्यापारियों का वर्ग था। इसके पहले वर्गों के सभी प्रारम्भिक और अविकिसित रूपो का केवल उत्पादन से सम्बन्ध था। उत्पादन मे लगे हुए लोगों को उत्पादन का प्रवध करनेवालो और कार्य करनेवालो में , या बड़े पैमाने पर उत्पादन करनेवालो और छोटे पैमाने पर उत्पादन करनेवालों में, वांट दिया गया था। लेकिन यहां पहली बार एक ऐसा वर्ग सामने आता है जो उत्पादन में बिना कोई भाग लिये ही उसके पूरे प्रबंध पर अधिकार जमा लेता है और उत्पादको को प्रार्थिक दृष्टि से अपने अधीन कर लेता है। हर दो प्रकार के उत्पादको के बीच वह एक ऐसा विचवइया बन जाता है जिसके विना उनका काम नहीं चलता और फिर वह उन दोनों का शोषण करता है। इस बहाने से कि उत्पादकों को विनिमय की परेशानी और जोखिम न उठानी पड़े, उनकी पैदावार के लिए दूर-दूर के वाजार खोज लिये जायें और इस प्रकार समाज का सबसे उपयोगी वर्ग बनने के बहाने से वास्तव में परोपजीवियो का एक वर्ग उत्पन्न होता है-ये असली माने में सामाजिक पराश्रयी है जो वस्तुतः नगण्य सेवामो के पुरस्कार के रूप में देश और विदेश के उत्पादन की मारी मलाई पट कर जाते है , देखते-देखते बेशुमार दौलत जमा कर लेते है, उसके मनरूप समाज में असर जमा लेते है और इसी कारण उन्हे सभ्यता के युग में नित नया मम्मान प्राप्त होता है और उनका उत्पादन पर मधिकाधिक नियंत्रण होता नाता है, यहा तक कि अन्त में वे खुद अपनी एक उपज लेकर उपस्थित होते है , और वह है एक निश्चित अवधि के बाद बार-बार पानेवाला प्रचं-गंकट । विकास की जिस प्रवस्था को हम चर्चा कर रहे है , उगमे नवोत्पन्न व्यापारी वर्ग को अभी इस बात का कोई प्राभाम न मिला था कि उगके भाग्य में कितनी बड़ी-बड़ी बातें लियी है। लेकिन यह उदित हुमा पार पपने को समाज के लिए अपरिहार्य बना लिया - इतना ही काफी था। इसके माथ-साथ धातु-मता, धातु के बने गिो. फाम में पाने नगे और