के संगठनों से सर्वथा अपरिचित था, और जो, जैसा कि रोम में हुआ, देश में एक प्रभुताशाली शक्ति बन सकता था। इन लोगों की संख्या बहुत बड़ी होने के कारण यह असम्भव था कि रक्तसम्बद्ध गोत्न और कबीले उनको धीरे-धीरे अपने अन्दर जाव कर लें। इस विशाल जन-समुदाय की नजरों में गोत्र-व्यवस्था के संगठन ऐसे विशिष्ट संगठन थे जिन्हे विशेषाधिकार प्राप्त थे और जो बाहर के लोगों को अपने यहा घुसने नहीं देते थे। जो प्रारम्भ में प्राकृतिक विकास से उत्पन्न लोकतन्त्र था, वही अब एक घृणित अभि- जाततंत्र बन गया था । अन्तिम वात यह है कि गोन्न-व्यवस्था एक ऐसे समाज के गर्भ से पैदा हुई थी जिसमें किसी तरह के अन्दरूनी विरोध नही थे और वह केवल ऐसे समाज के ही योग्य थी। जनमत के सिवा उसके पास दबाव डालने का कोई साधन न था। परन्तु अब एक नया समाज पैदा हो गया था, जिसे स्वयं उसके अस्तित्व की तमाम अार्थिक परिस्थितियों ने अनिवार्यतः स्वतंत्र नागरिकों और दासो में , शोपक धनिकों और शोपित गरीबो में बांट दिया था और जो न केवल इन विरोधो में सामंजस्य लाने में असमर्थ था , बल्कि जो अनिवार्यतः उन्हें अधिकाधिक पराकाष्ठा पर पहुंचा रहा था। ऐसा समाज या तो इस हालत मे जीवित रह सकता था कि ये वर्ग वरावर एक दूसरे के खिलाफ़ खुला संघर्ष चलाते रहें और या इस हालत में कि एक तीसरी शक्ति का शासन हो, जो देखने में, आपस में लडनेवाले वगों के ऊपर मालूम पड़े, उनके खुले संघर्ष को न चलने दे और जो ज्यादा से ज्यादा उन्हें केवल आर्थिक क्षेत्र मे और तथाकथित कानूनी ढंग से वर्ग-संघर्ष चलाने की इजाजत दे। गोत्र-व्यवस्था की उपयोगिता समाप्त हो चुकी थी। श्रम-विभाजन तथा उसके परिणामस्वरूप समाज के वर्गों में बंट जाने से वह ध्वस्त हो गयी। उसका स्थान राज्य ने ले लिया । -
ऊपर हमने उन तीनो रूपो की अलग-अलग चर्चा की है, जिनमें गोन- व्यवस्था के ध्वंसावशेषो पर राज्य का निर्माण हुमा। एथेस सबसे शुद्ध, सबसे क्लासिकीय रूप का प्रतिनिधित्व करता है। वहा राज्य सीधे-सीधे और प्रधानतया उन वर्ग-विरोधों से उत्पन्न हुआ जो गोत्न-समाज के भीतर पंदा हो गये थे। रोम में गोत्र-समाज बहुसंख्यक प्लेवियनों - निम्न जनो के बीच , जो इस समाज के बाहर थे, जिन्हें कोई अधिकार प्राप्त न था और जिन के लिए केवल कर्तव्य निर्दिष्ट थे, एक विशिष्ट अभिजातीय समाज २१७