पृष्ठ:परिवार, निजी सम्पत्ति और राज्य की उत्पत्ति.djvu/२२४

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रहते थे। वे जानते थे कि उनकी पैदावार का क्या होता है। वे उसका उपभोग करते थे, वह उनके हाथ में ही रहती थी। जब तक इस आधार पर उत्पादन चलता रहा, तब तक वह उत्पादकों के नियंत्रण से बाहर नहीं निकल पाया और उनके खिलाफ वैसी अजीव, प्रेत शक्तियो को नहीं खडा कर सका , जैसी कि सभ्यता के युग में नियमित और अवश्यम्भावी रूप से खड़ी होती रहती हैं। परन्तु धीरे-धीरे उत्पादन की इस क्रिया मे श्रम-विभाजन घुस आया। उसने उत्पादन तथा हस्तगतीकरण के सामूहिक रूप की नीव खोद डाली। उसने अलग-अलग व्यक्तियो द्वारा हस्तगतीकरण को मुख्यतया प्रचलित नियम बना दिया और इस प्रकार व्यक्तियो के बीच विनिमय का श्रीगणेश किया। यह सब कैसे हुआ, यह हम ऊपर देख चुके है। धीरे-धीरे माल-उत्पादन मुख्य रूप बन गया। माल-उत्पादन शुरू होने पर जब उत्पादन खुद उत्पादक के उपयोग के लिये नहीं, बल्कि विनिमय के लिये होता है, तब पैदावार का एक हाय से दूसरे हाथ मे जाना अनिवार्य हो जाता है। विनिमय के दौरान उत्पादक के हाथ से उसकी पैदावार निकल जाती है। अब वह नहीं जानता कि उसकी पैदावार का क्या हुआ। और जैसे ही मुद्रा तथा उसके साथ व्यापारी आकर उत्पादको के बीच विचवइये के रूप में खड़े हो जाते है, वैसे ही विनिमय की क्रिया और भी अधिक जटिल हो जाती है और पैदावार का अन्त में क्या होगा, यह बात और भी अनिश्चित बन जाती है। व्यापारियों की संख्या बहुत बड़ी होती है और एक व्यापारी यह नहीं जानता कि दूसरा क्या कर रहा है। अब माल एक हाथ से निकलकर दूसरे हाथ मे ही नही जाता है, बल्कि वह एक बाजार से दूसरे बाजार मे भी घूमता रहता है। अब उत्पादको का अपने जीवन के लिये आवश्यक वस्तुमो के कुल उत्पादन पर नियंत्रण नही रह गया है और व्यापारियों के हाय मे भी यह निमंत्रण नहीं आया है। उपज और उत्पादन संयोग के अधीन हो जाते है। किन्तु संयोग अन्तर्सम्बन्ध का एक छोर है, जिसका दूसरा पावश्यकता कहलाता है। प्रकृति में भी संयोग का राज मालूम पड़ता है। परन्तु हम बहुत दिन हुए उसके हर क्षेत्र में यह दिया चुके है कि इस मयोग के भावरण में मन्तनिहित मावश्यकता पौर नियमितता काम करती है। पर . छोर २२४