. दास-प्रथा के साथ-साय, जो सभ्यता के युग में अपने विकास के शिखर पर पहुंची थी, समाज का पहली बार शोषक और शोपित वर्गों में बड़ा विभाजन हुआ। यह विभाजन सभ्यता के पूरे युग में वरावर कायम रहा है। शोपण का पहला स्प दास-प्रथा था, जो प्राचीन काल के लिये विशिष्ट था। उसके बाद मध्य युग मे भूदास-प्रथा और आधुनिक काल में उजरती श्रम की प्रथा पायी। सभ्यता के तीन बड़े युगों की विशेषताओं के रूप मे अधीनता के ये तीन बड़े रूप रहे है ; खुली , और वाद मे छिपी हुई दासता वरावर उनके साथ-साथ चलती आयी है। सभ्यता का युग माल-उत्पादन की जिस अवस्था से प्रारम्भ हुआ था। उसकी आर्थिक विशेषताएं ये थी : (१) धातु से बनी मुद्रा इस्तेमाल होने लगी थी और इस प्रकार मुद्रा के रूप मे पूंजी , सूद तथा सूदखोरी का चलन हो गया था ; () उत्पादको के बीच में विचवई करनेवाले व्यापारी आकर खड़े हो गये थे; (३) ज़मीन पर निजी स्वामित्व कायम हो गया था और रेहन की प्रथा जारी हो गयी ; (४) उत्पादन का मुख्य रूप दास- श्रम का उत्पादन बन गया था। सभ्यता के युग के अनुरूप परिवार का रूप, जो इस युग में निश्चित तौर पर प्रचलित रूप बन गया , वह एक एकनिष्ट विवाह है, पुरुष का स्ती पर प्रभुत्व रहता है और हर अलग- अलग परिवार समाज की आर्थिक इकाई होता है। सभ्य, समाज की संलागी शक्ति राज्य है, जो सामान्य कालों मे केवल शासक वर्ग का राज्य होता है और जो बुनियादी तौर पर सदा उत्पीडित एवं शोषित वर्ग को दवाकर रखने के यंत्र का काम करता है। सभ्यता की अन्य विशेषतायें ये है : एक ओर तो पूरे सामाजिक श्रम-विभाजन के आधार के रूप में शहर व देहात के बीच स्थायी विरोध कायम हो जाता है। दूसरी ओर वसीयत की प्रथा जारी हो जाती है, जिसके जरिये सम्पत्ति का मालिक अपनी मृत्यु के बाद भी. अपनी जायदाद का जैसे चाहे निपटारा कर सकता है। यह प्रथा जो पुराने गोन-संघटन पर सीधे-सीधे प्रहार करती थी, सोलन के समय तक एथेंस में अज्ञात थी। रोम में वह प्रारंभिक काल में ही जारी हो गयी थी, पर हम ठीक-ठीक नही कह सकते कि कब हुई थी.; जर्मनों मे वसीयतनामे . लासाल को पुस्तक 'अर्जित अधिकारों की व्यवस्था' 163 के दूसरे भाग का अाधार मुख्यतया यह प्रस्थापना है कि रोम मे वसीयत की प्रथा २२६
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