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पृष्ठ:परिवार, निजी सम्पत्ति और राज्य की उत्पत्ति.djvu/३१

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के बाद कभी-कभी शिकार किये गये पशुओं का मांस भी भोजन में शामिल हो जाता था। पूर्णतः शिकारी जातियां, जिनका वर्णन प्रायः पुस्तकों में मिलता है - यानी वे जातियां जो केवल शिकार के सहारे जीती थी, वास्तव मे कभी नहीं थी। यह सम्भव नहीं था क्योंकि शिकार से भोजन पाना बहुत ही अनिश्चित होता है। खाने की चीज़ो का मिलना सदा बड़ा अनिश्चित रहता था, इसलिये , मालूम होता है, इस काल में नरमास-भक्षण भी प्रारम्भ हो गया और बाद मे बहुत समय तक चलता रहा। आस्ट्रेलिया के आदिवासी और पोलिनेशिया के बहुत से लोग आज भी जागल युग की इस मध्यम अवस्था में रह रहे हैं। ३ . उन्नत अवस्था। यह अवस्था धनुष-वाण के आविष्कार से प्रारम्भ होती है, जिनके कारण जंगली पशुओं का शिकार एक सामान्य चर्या बन गया और उनका मांस भोजन का नियमित अंग हो गया। धनुप, डोरी और बाण से वना यह अस्त्र अत्यंत संश्लिष्ट प्रकार का है, जिसके आविष्कार के लिये लम्बा संचित अनुभव और अधिक तीक्ष्ण बुद्धि तथा अधिक मानसिक क्षमता पूर्वापेक्षित थी, और इसलिये धनप-याण के साथ- साथ इस काल का मनुष्य अन्य अनेक आविष्कारों से भी परिचित रहा होगा। यदि हम इन मनुष्यों की तुलना उनसे करे जो धनुष-वाण से तो परिचित थे, पर मिट्टी के वर्तन-भांडे बनाने की कला अभी नहीं जान पाये थे (मिट्टी के बर्तन बनाने की कला से ही मौर्गन बर्बर युग का प्रारम्भ मानते हैं ), तो हम पाते है कि इस प्रारम्भिक अवस्था में भी मनष्य ने गांवो में बसना शुरू कर दिया था, और जीवन-निर्वाह के साधनों के उत्पादन पर किसी कदर काबू पा लिया था। वह लकड़ी के बर्तन-भाड़े बनाने लगा था, पेड़ों की कोमल छाल से निकले रेशे को हाथ से ( विना करघे के ) बुनना सीख गया था, छाल की और बेंत की टोकरियां बनाने लगा था, और पत्थर के पालिशदार, चिकने औजार ( नव पापाण युग के प्रौद्धार) सैयार करने लगा था। अधिकांशतः, ग्राम और पत्थर की कुल्हाड़ी की बदौलत पेड़ का तना खोखला कर बनायी गयी नाव, और कही-कही मकान बनाने की लकड़ी और तस्ते भी सुलभ हो गये थे। उदाहरण के लिये उत्तर-पश्चिमी अमरीका के इंडियनों में, जो धनुष-बाण से तो परिचित है, पर मिट्टी के बर्तन बनाने की कला नहीं जानते, ये ३१