यह बात मौरी मे बेहतर हुमा। बल्कि सच तो यह है कि यदि हम न्यू-मैक्मिरो उपयुक्त स्थानो मे पशुओ के रेवड़ या झुण्ड बनने से गड़रियों का जीवन शुरू हो गया। सामी लोगों ने दजला और फ़रात नदियों के पास के मैदानो में यह जीवन प्रारम्भ किया, पार्यों ने भारत के मैदानों में, ओक्सस और जक्सारटिस नदियों के और दोन तथा नेपर" नदियों के मैदानो में इस जीवन की शुरूआत की। जानवरो को पालतू बनाने का काम पहले पहल घास के इन मैदानो की सीमानो पर ही शुरू हुआ होगा। इसलिये वाद मे आनेवाली पीढ़ियो को लगा कि पशुचारी जातियो का उद्भव इन्ही इलाको मे हुआ होगा, जबकि वास्तव मे ये इलाके ऐसे थे कि वहा मानवजाति के शैशवकाल मे उसका पालन-पोषण होना तो दूर की बात है, ये इन पीढ़ियों के जागल पूर्वजो के और यहां तक कि वबंर युग की निम्न अवस्था के लोगों के भी रहने लायक नही थे। दूसरी ओर, भी थी कि बर्बर युग की मध्यम अवस्या के लोग एक बार पशुचारी जीवन मे प्रवेश करने के बाद यह कभी नही सोच सकते थे कि पानी से हरे-भरे घास के इन मैदानो को अपनी इच्छा से छोड़कर वे फिर उन जंगली इलाको मे चले जायें जहा उनके पूर्वज रहा करते थे। यहां तक कि जब आर्यों और सामी लोगों को और अधिक उत्तर तथा पश्चिम की ओर खदेड दिया गया, तो पश्चिमी एशिया तथा यूरोप के जंगली इलाकों में बसना उनके लिये असम्भव हो गया। वहां वे केवल उसी समय बस पाये जब अनाज की खेती की बदौलत कम अनुकूल मिट्टी के बावजूद, उनके लिये अपने पशुओं को खिलाना, और, विशेषकर, जाड़ों में भी इन इलाको मे रहना सम्भव हो गया। बहुत सम्भव है कि शुरू में अनाज की खेती पशुप्रो को खिलाने के लिये चारे की आवश्यकता के कारण ही प्रारम्भ हुई हो, और बाद मे चलकर ही अनाज ने मनुष्यो के भोजन के रूप मे महत्त्व प्राप्त किया हो। पायों तथा सामी लोगों के पास भोजन. के लिये मास तथा दूध प्रचुरता थी, और विशेषकर बच्चों के विकास पर इस भोजन का बहुत मच्या प्रभाव पड़ता था। शायद यही कारण है कि इन दो नस्लो या विकास में रहनेवाले पुएब्लो इंडियनो को देखें जो प्रायः पूर्णतः शाकाहारी हो गये है, तो हम पाते हैं कि वयंर युग की निम्न प्रवस्था में , मास और माती मधिक गानेवाले इंडियनी की तुलना में उनका मस्तिष्क छोटा होता है। . की
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